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क्या कहूँ….?!

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क्यों करें
बदलाव की चर्चा ;
क्रांति- गीतों से
गुंजायें
क्यों धरा- आकाश –
मूक- बधिरों के
नगर में ?
क्या कहूं ….?!!
न धड़क सकूँ
समय की धड़कनों में
ना ही रच
पाऊँ कोई
इतिहास
खोखली बातों से
परिवर्तन नहीं आता
क्या कहूं …..!?
दर्द गूंगा सा
हुई बहरी
हर इक
संवेदना
हो गया है
चेतना का ह्रास
मूक- बधिरों
के नगर में
क्या कहूं…..?!
विषबुझी चलती
हवाएं
बंट गईं
सारी दिशाएं
ढल गया
सद्भाव का मधुमास
मूक- बधिरों
के नगर में
क्या कहूँ….?!

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