Vichar
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मेरे चारों तरफ
उठ खड़ी हुई हैं
दीवारें ही दीवारें
कहीं नफरत
तो कहीं भेदभाव की
कहीं मजहब/ कहीं जाति,
कहीं भाषा / कहीं क्षेत्रीयता
तो कहीं सियासी टकराव की
वो दीवारें थीं
जलियाँ वाला बाग़ की
जिन पर लहू के छीटों ने
लिख दिया था इतिहास
वो दीवार ही तो थी जिस पर
चुन दिए गए
अनारकली के एहसास
ये दीवारें
जो बाँट रही हैं –
इंसानियत को, कई खेमों में
इन दीवारों के घेरे में
कैद है मेरी खुद्दारी
चक्रव्यूह में फंसे
अभिमानु की तरह!
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