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यह उद्गार उस कन्या के हैं, जिसे उसके माँ बाप, शिक्षा और समग्र विकास का अवसर दिए बिना ही, ब्याह देना चाहते हैं; कारण- विवाह के लिए सुपात्र का मिल जाना. परन्तु कन्या को जीवन पथ पर आगे बढ़ने के लिए किसी बैसाखी की दरकार नहीं. वह विकलांग नहीं – सक्षम है, समाज में अपना स्थान बनाने के लिए, जीवन को एक सार्थक दिशा देने के लिए .
माँ मुझे बैसाखियाँ मत दो
तनिक टटोल तो लूँ ,अपने भीतर
संभावनाओं को
परख तो लूँ , खुद को
वक़्त की कसौटी पर
नहीं चाहिए-
खरीदी हुई पहचान
निकली हूँ
अस्तित्व की तलाश में
मैं तुम्हारी छाया हूँ माँ
मैं तुममें हूँ
और तुम मुझमे हो,
समग्रतः
मेरी हर सफलता,
स्थापित करेगी –
तुम्हारे ही वजूद को
थोप लूँ क्यों फिर-
उधार के रसूख को ?
मेरे लड़खड़ाते हुए कदम
सीख ही लेंगे
चलना जीवन की राहों पर
इन्हें बस चाहिए
तुम्हारे नेह का संबल
माँ मुझे बैसाखियाँ मत दो
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