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दोस्ती का हश्र

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इस कदर रुसवा हुए हैं,
दोस्ती में हम तेरी
आईने में अक्स अपना
देखने से डर रहे हैं
बदनुमा सच्चाइयाँ जो
पाक रिश्तों से जुड़ीं
अपने ही क्यों , गैर भी
उसका खुलासा कर रहे हैं
एक मुद्दत से निभाते
आ रहे थे हम जिसे
उस वफ़ा के नाम ही
इलज़ाम सर पे धर रहे हैं
हावी हम पर यूँ हैं
नामालूम सी बेचैनियाँ –
उनकी प्यारी याद को भी
बेदखल हम कर रहे हैं
तुम कहो या न कहो
ये इल्म हमको है जरूर
हम तुम्हारी राह में
बस मील का पत्थर रहे हैं

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