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प्रेम के नाम पर(एक लघु कथा)-Valentine contest

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रूपेश अपनी भावी पत्नी को घर लेकर आया था. “निम्मी”, उसने इस महिला मित्र से कहा, ” माँ, थोड़ी देर में आती ही होंगी. उनके स्कूल में आज दो पीरिएड के बाद ही छुट्टी हो जायेगी.” कहते कहते रूपेश, निम्मी को देखकर मुस्कराया और आँख दबाकर बोला, “वैसे माँ बहुत उतावली हैं, होने वाली ‘बहू’ से मिलने के लिए”
“रूपेश!” निम्मी बनावटी गुस्सा दिखाते हुए बोली, “तुम्हें तो बस छेड़ने का बहाना चाहिए……आने दो मांजी को. तुम्हारी खूब शिकायत कर्रूँगी उनसे.” इस पर रूपेश थोड़ा सकपका गया. यह देख, चतुर निम्मी ने बात को मोड़ दिया, “मुझे ये तो बताओ कि इस बार कौन सी वैलनटाइन गिफ्ट दे रहे हो?”
“बताता हूँ, बताता हूँ ……पहले आँखें तो बंद करो”
“ओके” निम्मी ने आँखें मूंदकर कहा, “पर जल्दी करना. मैं ज्यादा इन्तजार नहीं कर सकती ” रूपेश ने जेब से एक सोने की अंगूठी निकाली और निम्मी को पहना दी ” जैसे ही निम्मी की नज़र अंगूठी पर पड़ी, उसके चेहरे का रंग उतर गया. रूपेश उसकी हालत से अनजान बोले जा रहा था, “ये हमारी खानदानी अंगूठी है. माँ ने अपनी बहू के लिए रख छोड़ी है….” निम्मी ने अधीर होकर पूछा, “तुम्हारी माँ पहले आँगनवाड़ी में काम करती थीं?”
“हाँ…..पर तुम्हें कैसे पता? रूपेश चौंक गया. “नहीं,… यूँ ही …किसी ने बताया था.” निम्मी ने चेहरा घुमा लिया ताकि उसका दोस्त, उसके भावों को न पढ़ सके, ” मुझे चक्कर सा आ रहा है. एक गिलास पानी मिलेगा?” यह सुनते ही रूपेश किचेन की तरफ दौड़ा. निम्मी भी उसके पीछे आ ही रही थी कि उसकी नज़र बरामदे पर टंगी तस्वीर पर पड़ी . धूल की परतों से ढंकी उस फोटो पर, मुरझाये हुए फूलों की माला पड़ी थी. फोटो को ध्यानपूर्वक देखा तो निम्मी अवाक रह गयी. तब तक रूपेश पानी लेकर आ गया था. “ये कौन?” निम्मी को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था. “मेरा भाई सुहास”, रूपेश ने गंभीरता से कहा. “क्या हुआ था इसे?”, निम्मी जैसे कोई दुस्वप्न देख रही थी.
“इसकी प्रेमिका ने इसे धोखा दिया…..उसकी बेवफाई से ….यह इतना टूट गया कि..”
“आगे बताने की जरूरत नहीं है. कौन थी वो लड़की?”
“पता नहीं, मैंने कभी देखा नहीं, उन दिनों मैं विदेश में था ना, ….. इसीलिए …..”
“आगे कहो रूपेश…”
“सुहास के दफ्तर में काम करती थी…सुना था, उसका नाम निर्मला था. माँ ने उसे अपनी बहू मानकर….यही खानदानी अंगूठी पहनाई ”
“फिर?” निम्मी जानकर भी अनजान बन रही थी.
“फिर!!!….उसकी ममा ने एक पैसे वाले लड़के को फांस लिया, अपना दामाद बनाने के लिए…….पैसे का लालच उसे भी रहा होगा, इसी से, …” रूपेश अटक अटककर बोल रहा था, “इसी से…..उसने अंगूठी ……सुहास को वापस कर दी.”
“वो लड़की?” निम्मी के प्रश्न को सुनकर, एक विषैली मुस्कान रूपेश के मुख पर छा गयी, “उसे अपने किये की सजा मिल चुकी. जब उसके होने वाले पति को सुहास के सुसाइड नोट की भनक लगी, जिसमें उस लड़की का भी जिक्र था……उसके बाद….. यू नो….”
“आई कैन अंडरस्टैंड….” निम्मी ने थके स्वर में कहा, ” रूपेश मुझे मेरे घर छोड़ दो. और नहीं रुक सकूंगी …..और हाँ….ये अंगूठी भी रख लो…इसे मांजी के हाथ से ही पहनूंगी…” निम्मी का व्यवहार, रूपेश को कुछ अजीब सा लग रहा था. फिर भी उसने, बाइक निकाल ली, दोस्ती की खातिर. बाइक की पिछली सीट पर बैठी निम्मी को, सुहास की तस्वीर मुंह चिढ़ा रही थी ; मानों कह रही हो, “निम्मी उर्फ़ निर्मला! तुमने सोचा कि मामला ठंडा पड़ गया पर नहीं ……तुम्हारा पाप तुम्हारा पीछा कभी नहीं छोड़ेगा!”

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